A Secret Weapon For Shodashi

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हरिप्रियानुजां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥

वास्तव में यह साधना जीवन की एक ऐसी अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है फिर भी पांच दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं—

Her third eye represents higher perception, helping devotees see outside of Actual physical appearances into the essence of truth. As Tripura Sundari, she embodies really like, compassion, and the Pleasure of existence, encouraging devotees to embrace lifestyle with open up hearts and minds.

The most revered between these will be the 'Shodashi Mantra', that is explained to grant both equally worldly pleasures and spiritual liberation.

केवल आप ही वह महाज्ञानी हैं जो इस सम्बन्ध में मुझे पूर्ण ज्ञान दे सकते है।’ षोडशी महाविद्या

ईड्याभिर्नव-विद्रुम-च्छवि-समाभिख्याभिरङ्गी-कृतं

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल click here और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

यदक्षरमहासूत्रप्रोतमेतज्जगत्त्रयम् ।

॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरी पञ्चरत्न स्तोत्रं ॥

The Tripurasundari temple in Tripura state, domestically often called Matabari temple, was 1st Started by Maharaja Dhanya Manikya in 1501, even though it was in all probability a spiritual pilgrimage web page For most generations prior. This peetham of electric power was at first meant to become a temple for Lord Vishnu, but as a result of a revelation which the maharaja experienced in the desire, He commissioned and mounted Mata Tripurasundari in its chamber.

Goddess Tripura Sundari is likewise depicted like a maiden carrying excellent scarlet habiliments, dark and prolonged hair flows and is completely adorned with jewels and garlands.

श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥

सा देवी कर्मबन्धं मम भवकरणं नाश्यत्वादिशक्तिः ॥३॥

बिभ्राणा वृन्दमम्बा विशदयतु मतिं मामकीनां महेशी ॥१२॥

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